क्या है भूमिहार ब्राह्मणों का इतिहास ???

 वैसे तो हिन्दू सभ्यता दुनिया की सबसे प्राचीन सभ्यता है जिसका इतिहास 5000  सालो से भी जादा पुराना | पर आज हम यहाँ एक खास समुदाय  विषेस की बात करने जा रहे है 
 " भूमिहार " |
पहली बार 1865 में आगरा और अवध के संयुक्त प्रांतों के रिकॉर्ड में " भूमिहार " शब्द का  इस्तेमाल किया गया था। यह शब्द "भूमि" से निकला है, जो जाति की भूमि की स्थिति का उल्लेख करता है। भूमिहार का अर्थ होता है "भूमिपति" , "भूमिवाला" या भूमि से आहार अर्जित करने वाला (कृषक) | 

भूमिहार अथवा भूमिहार ब्राह्मण, बाभन समुदाय का एक नया नाम है। काशी नरेश के नेतृत्व में बाभन जमींदारों ने भूमिहार ब्राह्मण नाम प्रस्तावित किया | 1911 की जनगणना के बाद समुदाय का भूमिहार ब्राह्मण नाम स्वीकार किया गया । यह मुदाय 1911 की जनगणना से पहले केवल बाभन के नाम से जाना जाता था । भूमिहार जाति के लोग ब्राह्मण होने का दावा करते हैं, और उन्हें भूमिहार ब्राह्मण भी कहा जाता है।

भूमिहार जिसे परसुराम के वंशजो के रूप में भी जाना जाता है  | 
जो उत्तर प्रदेशबिहारझारखंड तथा थोड़ी संख्या में अन्य प्रदेशों में निवास करती है।

16 वीं शताब्दी तक, भूमिहारों ने पूर्वी भारत में, विशेष रूप से उत्तर बिहार में भूमि के विशाल हिस्सों को नियंत्रित किया। अठारहवीं शताब्दी के उत्तरार्ध में, बिहारी राजपूतों के साथ, उन्होंने खुद को इस क्षेत्र के सबसे प्रमुख जमींदारों के रूप में स्थापित किया | 
भूमिहार 20 वीं शताब्दी तक पूर्वी भारत के एक प्रमुख भू-स्वामी समूह थे, और इस क्षेत्र में कुछ छोटी रियासतों और जमींदारी संपदाओं को नियंत्रित करते थे। भूमिहार समुदाय ने भारत के किसान आंदोलनों में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। 20 वीं शताब्दी में भूमिहार बिहार की राजनीति में अत्यधिक प्रभावशाली थे और एक शक्ति के रूप में उभर के सामने आये | इनका इतना प्रभावशाली होने के पीछे इनकी अपने समझदारी और धर्म का पूरा ज्ञान भी था जिसने इन्हे प्रभावशाली बनाया | 

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